अधखुली खिड़की और बारिश
अतुल को भी ना जाने क्या सूझी मानसून में उत्तराखण्ड घूमने का कार्यक्रम बना लिया वो भी अकेले। घरवालों ने मना भी किया लेकिन आजकल की युवा पीढ़ी को तो एडवेंचर चाहिए, सीधी-सादी जिंदगी में मज़ा किसे आता है। सबके लाख मन करने पर भी अतुल सुबह छह बजे मसूरी के लिए निकल गया था। अतुल को कोई जल्दी नहीं थी पहुंचने की, बस इतना था कि शाम होने से पहले मसूरी पहुँच जाए। वो रास्ते में रुक-रुककर जा रहा था आराम से खाते-पीते हुए।
देहरादून से मसूरी काफी पास था तो अतुल कुछ देर के लिए देहरादून में स्थित माल देवता को देखने के लिए निकल गया था। हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गयी थी। माल देवता में चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ थे और उनमें से बारिश के कारण छोटे-बड़े झरने बह रहे थे। जहाँ भी देखो हरियाली ही हरियाली थी, पेड़ों का हरा रंग पहले से और अधिक गहरा हो गया था।
थोड़ी देर वहाँ को खूबसूरती का आनंद लेकर अतुल मसूरी में स्थित लैंडोर नामक स्थान के लिए निकल गया था। रास्ते में अचानक से बारिश तेज़ हो गई थी और इस तेज़ बारिश में वो भी पहाड़ों में गाड़ी चलाना और भी मुश्किल हुए जा रहा था। गाड़ी बड़ी धीमी रफ्तार से चल रही थी।
अतुल को अब डर लगने लगा था कहीं वो बारिश की वजह से बीच सड़क पर फंस ना जाए। चार ही बजे थे और ऐसा लग रहा था जैसे रात के आठ बज रहे हो। लैंडोर ज्यादा दूर नहीं रह गया था अगर गूगल की माने तो लेकिन बारिश के कारण वहाँ तक पहुंचना टेढ़ी खीर लग रहा था। बारिश इतनी ज़्यादा होने लगी कि अब रास्ते में रुकने के सिवाय कोई चारा नहीं था। उसने पास ही के गाँव में आश्रय लेने का सोचा गाड़ी ऊपर सड़क के किनारे खड़ी करके वो नीचे की ओर उतरने लगा गाँव की तरफ। अमावस्या की रात थी। हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा था।
यकायक उसके पाँव उस घर की तरफ मुड़ गए जिसमें बाहर छज्जा बना हुआ था और हल्की सी खिड़की खुली हुई नजऱ आ रही थी। वो वहीँ बाहर सिकुड़कर बैठ गया और बारिश के ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा। ठंड के मारे बुरा हाल था। दिल कर रहा था कहीं से गरम-गरम चाय मिल जाए बस पीने को। कभी-कभी छोटी-छोटी चीजें भी जिंदगी में बड़ी महत्वपूर्ण होतीं है जैसे की बारिश में ठंड से कंपकपाते शरीर को गरम चाय का मिल जाना। इससे सुखद और रोमानी कुछ हो सकता है, शायद नहीं।
चाय की तो सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी क्योंकि घर के बाहर तो ताला लगा था। अतुल अधखुली खिड़की से घर के अंदर झांकने की कोशिश करने लगा। घर की हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी। वैसे भी उत्तराखंड के गाँव पलायन की मार झेल रहे थे। घर में अंधेरा था, कुछ ठीक से दिख नहीं रहा था। तभी उसने मोबाइल की टॉर्च जलाकर देखा तो एक लड़की दिखी….. गोरा रंग, छोटी-छोटी पहाड़ी आँखे और सिर पर दुपट्टा बंधा हुआ था जैसे अक्सर पहाड़ी औरतें अपने सिर पर बाँधती हैं।
पहाड़ी लड़कियों की सुन्दरता भी यहाँ के पहाड़ों की तरह होती है मन को सुकून देने वाली। इन्हें सुंदर दिखने के लिए किसी सौंदर्य प्रसाधन की आवश्यकता नहीं पड़ती। दूध जैसे रंग पर गुलाबी होंठ और ठंड से और गहरे होते सुर्ख लाल गाल ही काफी थे उनकी सुन्दरता में चार चांद लगाने के लिए। लालटेन लेकर वो खिड़की की तरफ आ गयी और मेरी तरफ देखने लगी।
अतुल उसकी तरफ टकटकी लगाए देखा जा रहा था, तभी उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से अतुल की ओर देखा।
अतुल ने हड़बड़ाकर कहा….." मेरा नाम अतुल है। मैं दिल्ली से मसूरी घूमने के लिए आया हूँ। लैंडोर में मेरी होटल की बुकिंग है। रास्ते में मूसलाधार बारिश से बचने के लिए मैं आपके घर के बाहर रुक गया। बारिश बंद होते ही मैं चला जाऊँगा।"
उसने कोई जवाब नहीं दिया और उस अधखुली खिड़की के पास बैठ गयी।
अतुल के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि ….."इतनी सुंदर लड़की ऐसे घर में बंद क्यों है और घर के बाहर ताला, कुछ समझ नहीं आ रहा था।"
अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए अतुल ने पूछ ही लिया….."तुम्हारे घर के बाहर ताला क्यों है?"
उसकी आँखों में आंसू झिलमिलाने लगे।
बड़ी लंबी कहानी है। बारिश अभी ख़त्म हो जायेगी और तुम चले जाओगे, फिर मेरी कहानी अधूरी रह जायेगी।"
"तुम बारिश की फ़िक्र मत करो, मैं तुम्हारी कहानी सुने बिना नहीं जाऊंगा। एक कप गरमागरम चाय मिल जाती तो ठंड से थोड़ी राहत मिल जाती।"
"घर में चाय बनाने का कोई सामान नहीं है।"
कोई बात नहीं तुम अपनी कहानी सुनाना शुरू करो….
मेरा नाम प्रीति है। सोलहवाँ साल लगते ही मेरा विवाह कर दिया गया एक बत्तीस साल के आदमी के साथ। उसका घर कभी मेरा घर नहीं बन पाया लेकिन उसकी पसंद-नापसन्द मेरी पसंद-नापसन्द बनती चली गयी। उसे बारिश पसन्द नहीं थी, जाहिर है मुझे पसन्द थी। बचपन में मैं मानसून का बेसब्री से इंतज़ार किया करती थी और बारिश में जी भर कर भीगती थी। लेकिन जब से शादी हुई है तबसे बारिश और मेरे बीच एक दीवार सी खड़ी हो गयी है।
आज भी इतंज़ार करती हूँ उस बारिश का जिसमें मेरे शरीर के साथ-साथ मेरी आत्मा भी भीग सके। सूखा पड़ गया है दिल की जमीन पर, मोटी-मोटी दरारें पड़ गयी है। मानसून तो हर साल आता है, बस मैं ही मिल नहीं पाती उसे।
मेरे पति का नाम महेंद्र है। उन्हें बारिश पसन्द नहीं है। इसलिए मेरी जिंदगी में अब मानसून नहीं है। पाँच साल हो गए हैं मेरे विवाह को लेकिन प्रेम का सही अर्थ मैं आज तक नहीं समझ पायी। देह सिर्फ स्पर्श की लालसा को पहचानती है, प्रेम की मिठास नहीं।
मेरी सुन्दरता और कम उम्र के कारण विवाह के लिए मेरा चुनाव किया गया और इसके एवज में मेरे गरीब माता पिता को कुछ धन दिया गया। यही सुन्दरता मेरी बेड़ी बनती चली गयी और उसके मन में संदेह का बीज बोती गयी। संदेह का बीज एक दिन वृक्ष बन गया और मेरे पाँव की बेड़ियां मोटी होतीं गयी। मेरा गोरा रंग उनके काले रंग को डराने लगा और मेरी जिंदगी में अंधेरा बढ़ता चला गया। मैं इस चार दीवारी में सिमट कर रह गयी। मेरे और बाहरी जीवन को एक दूसरे से जोड़ती बस यह अधखुली खिड़की रह गयी।
अतुल ने पूछा…."आपने कभी विद्रोह क्यों नहीं किया?"
"पहली बार विद्रोह करने पर हिंसा झेलने को मिली और फिर विद्रोह को खत्म करने के लिए घर के बाहर ताला लगना शुरू हो गया।"
"आप खिड़की से चिल्लाकर भी तो लोगों को बुला सकतीं थी सहायता के लिए।"
"इस गाँव से सब लोग पलायन कर चुके हैं। एक यही घर खाली बचा है जिसमें अभी भी लोग हैं।"
"आपके पति कहाँ है इस वक़्त और आपके बच्चे?
"दिल्ली गए हैं काम से, परसों लौट आएंगे, एक बेटा था, वो मर गया।"
अतुल का मन भारी हो गया था, प्रीति की कहानी सुनकर। उसने दुखी मन से पूछा…
"जब तक आपके पति नहीं आ जाते तब तक आप यूँ ही बंद रहेंगी यहाँ?"
"बंद रहना किसको पसन्द है? छूटना चाहती हूँ इस पिंजरे से, लेकिन…..?"
"अगर मैं यह ताला तोड़ दूँ तो?"
"तुम नहीं तोड़ पाओगे यह ताला, बहुत मजबूत है। सुबह होते ही वो आ जायेगा, जो करना है अभी करना होगा।"
"मैं कोशिश करके देखता हूँ, अगर नहीं टूटा तो मैं पास ही के होटल से किसी को बुला लाऊंगा मदद के लिए।"
अतुल की कोशिशों से ताला तो टूट गया लेकिन जैसे ही वो घर में घुसा तो वहाँ कोई नहीं था सिर्फ सफ़ेद धुँए के सिवा और वो भी पल भर में हवा में कहीं खो गया था। अतुल ने कई बार प्रीति-प्रीति आवाज़ लगायी लेकिन उसकी अपनी ही आवाज़ जैसे लौटकर वापिस आ रही थी। उसके पसीने छूटने लगे थे, मन अनजानी आशंका से डर गया था और बारिश भी बाहर खत्म हो चुकी थी। वो फटाफट वहाँ से निकल गया। होटल पहुँचकर उसने चैन की साँस ली। वहाँ के मैनेजर ने उससे पूछा, "आपने बड़ी देर कर दी सर आने में, काफी देर से आपका इंतज़ार हो रहा था।"
अतुल ने हँसकर कहा…. रास्ते में बारिश में फंस गया था। कमरे में जाते ही अतुल फ्रेश होने के बाद बाहर खाने के लिए जाता है। वेटर प्लेट के बाद प्लेट लाता रहता है खाने की लेकिन अतुल रुकता ही नहीं। हारकर वेटर को कहना पड़ता है….."साहब खाना ख़त्म हो गया है।"
अतुल बड़ी सी डकार लेता है और कहता है…."कल से खाना दुगना बनाना, मुझे भूख ज़्यादा लगती है।"
अतुल बहुत खुश होता है…."इतने लंबे समय के बाद उसे आज़ादी जो मिली होती है।"
सुबह जब वेटर उसके लिए डबल नाश्ता लेकर आता है तो अतुल हँसकर कहता है…."अरे भाई मैं इतना नहीं खाता, ये खाने की दूसरी प्लेट वापिस लेकर जाओ।"
वेटर हैरान हो जाता है यह सुनकर लेकिन वो इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। रात को ठीक उल्टा होता है और अतुल फिर से प्लेट के बाद प्लेट ख़त्म करता जाता है। वेटर ये सारी बात मैनेजर को जाकर बता देता है। मैनेजर समझ जाता है….कुछ तो गड़बड़ है।
वो सुबह अतुल से पूछता है….आप कल रात को बारिश से बचने के लिए कहाँ रुके थे?
यहाँ से चार किलोमीटर दूर एक गाँव था। वहीं जो पहला घर दिखा, वहाँ वहीं रुक गया था।
क्यों क्या हुआ?
वो गाँव तो पूरा खाली है, वहाँ कोई भी नहीँ रहता। लोग कहते हैं उस गाँव में भूतों का डेरा है।
अतुल हँसने लगा…..मैंने तो कोई भूत नहीं देखा? इस धरती पर एक ही भूत है और वो है जीता-जागता इंसान। अतुल को कुछ भी याद नहीं था सिर्फ इस बात के कि वो उस गाँव में कुछ घण्टों के लिए रुका था।
मैनेजर अतुल की बात सुनकर चुप हो जाता है और समझ जाता है उसके साथ जो होना था, वो हो चुका है। भगवान उसकी रक्षा करे।
कुछ दिन अतुल मसूरी रहकर वापिस दिल्ली लौट गया था। उसके माता पिता को उसका व्यवहार कुछ अलग लग रहा था। उन्होंने भी गौर किया था अतुल दिन में सामान्य और रात में ज्यादा भोजन करने लगा था। लेकिन उन्होंने इसे मसूरी का असर समझकर नजऱ अंदाज कर दिया था।
प्रीति अतुल के साथ नही अब उसके भीतर रहने लगी थी। कुछ दिन बाद अतुल की मम्मी को उनकी मनपसन्द साड़ियाँ नहीं मिल रही थी। यह सोचकर वो परेशान थी आखिर साड़ियाँ गई तो गईं कहा?
अगले दिन जब अतुल की कपड़े जमा रही थी तो उसकी अलमारी में उन्हें अपनी साड़ियाँ नज़र आयीं। उन्होंने अतुल से इस बारे में पूछा तो अतुल ने कहा…हो सकता है आपने गलती से रख दीं होगी।
उसी रात को उन्होंने अतुल को लड़कियों की तरह तैयार होते भी देखा। आँखों में काजल और होंठों पर लिपस्टिक लगाए वो उनकी साड़ी में इठला रहा था।
उनका तो माथा ठनक गया था यह सब देखकर। उन्होंने अतुल के पिता को यह बात बताई और कहा….लगता है अतुल के ऊपर किसी ने कुछ कर दिया है।
अतुल के पिता ने भी वही कहा जो उसने मैनेजर को कहा था। जब उन्होंने अतुल से ऐसी बात कही तो वो नाराज़ हो गया और उन पर गुस्से से चिल्लाने लगा। अतुल के लिए यह वाहियात बात थी। उसकी मम्मी ने जब उसका वीडियो उसे दिखाया तो उसने अपना माथा पकड़ लिया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो ऐसी हरकत भी कर सकता है। ध्यान देने योग्य बात तो यह थी कि अगर उसने ऐसा किया है तो उसे कुछ याद क्यों नहीं था।
उसके माता पिता उसे मनोचिकित्सिक के पास भी ले गए। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, निकलता भी कैसे? शरीर अतुल का था और आत्मा प्रीति की। प्रीति शाम होते ही बाहर निकलती थी और सुबह होते ही गुम हो जाती थी। प्रीति आज़ाद थी। वो अब अतुल में ही नहीं उसके माता पिता में भी प्रवेश करने लगी थी। अतुल के परिवार की जिंदगी शाम होते ही अस्त व्यस्त हो जाती थी और सुबह ठीक।
कुछ समय बाद अतुल का घर भी खण्डहर बन गया था। पुलिस को एक सुबह तीनों की लाशें मिलीं थी। अब अतुल, उसके माता पिता और प्रीति सब एक परिवार बन गए थे।
रतन कुमार
30-Nov-2021 04:01 PM
Sundar kahani
Reply
NEELAM GUPTA
27-Nov-2021 03:31 PM
ऐसा लगा जैसे सब कुछ सच नहीं हो रहा है बहुत सुंदर कहानी लिखी आपने
Reply
Gunjan Kamal
27-Nov-2021 02:40 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
Reply